SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 805
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७८२ ) कारण और असार समझकर बुद्धिशाली पुरुष स्वल्पमात्र भी द्रव्यका लोभ न रखे. ४ संसार स्वयं दुःखरूप, दुखदायी फलका देनेवाला, परिणाम में भी दुःखकी संतति उत्पन्न करनेवाला, विटंबना रूप और असार है, यह समझकर उसमें प्रीति न रखना. ५ विषय विषके समान क्षणमात्र सुख देनेवाले हैं, ऐसा निरन्तर विचार करनेवाला पुरुष संसारसे डरनेवाला और तच्चज्ञाता होने से उनकी अभिलाषा नहीं करे. ६ तीव्र आरम्भसे दूर रहे निर्वाह न होय तो सर्वजीवों पर दया रखकर विवशतासे स्वल्प आरम्भ करे, और निरारंभी साधुओंकी स्तुति करे. ७ गृहबासको पाश ( बन्धन ) समान मानता हुआ, उसमें दुःख से रहे, और चारित्रमोहनीय कर्म खपानेका पूर्ण उद्यम करे. ८ बुद्धिमान् पुरुष मन में गुरुभक्ति और धर्मकी श्रद्धा रखकर धर्म - की प्रभावना, प्रशंसा इत्यादिक करता हुआ निर्मलसमकितका पालन करे. ९ विवेक से प्रवृत्ति करनेवाला धीरपुरुष, 'साधारण मनुष्य जैसे भेंड प्रवाहसे याने जैसा एकने किया वैसाही दुसरेने किया ऐसे असमझसे चलनेवाले हैं, यह सोच लोकसंज्ञा का त्याग करे. १० एक जिनागम छोड कर दूसरा प्रमाण नहीं और अन्य मोक्षमार्ग भी नहीं, ऐसा जानकर सर्व क्रियाएं आगम के अनुसार करे. १९ जीव जैसे यथाशक्ति संसारके अनेकों कृत्य करता है, वैसेही बुद्धिमान् पुरुष यथाशक्ति चतुर्विध धर्मको, आत्माको बाधा - पीडा न हो उस रातिसे ग्रहण करे. १२ चिंता
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy