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________________ ( ७६६ ) चातुर्मास बीत जाने पर वीतभयपट्टणको आया. सेनाके स्थान में आये हुए वणिकलोगों के निवास से दशपुर नामक एक नवीन नगर बस गया. वह राजा उदायनने जीवंतस्वामीकी पूजाके लिये अर्पण किया. इसी तरह विदिशापुरीको भायलस्वामीका नाम दे, वह तथा अन्य बारह हजार ग्राम जीवतस्वामीकी सेवामें अर्पण किये. प्रभावती के जीव देवताके वचनसे राजा कपिल केवलीप्रतिष्ठित प्रतिमाकी नित्य पूजा किया करता था. एक समय पक्खीपौषध होनेसे उसने रात्रिजागरण किया, तब उसे एकदम चारित्र लेने के दृढपरिणाम उत्पन्न हुए, प्रातःकाल होने पर उसने उक्त प्रतिमा की पूजाके लिये बहुतसे ग्राम, नगर, पुर आदि दिये. " राज्य अन्तमें नरक प्राप्त करानेवाला है, इसलिये वह प्रभावती के पुत्र अभीचिको किस प्रकार दूं ?" इत्यादि विचार मनमें आने से उसने केशिनामक अपने भानजेको राज्य दिया, और आपने श्रीवीर भगवान से चारित्र ग्रहण किया. उस समय केशिराजाने दीक्षा महोत्सव किया. एक समय अकालमें अपथ्याहारके सेवन से राजर्षि उदायनके शरीर में महाव्याधि उत्पन्न हुई । " शरीर धर्मका मुख्य साधन है " यह सोचकर वैद्यनें भक्षण करनेको बताये हुए दहीका योग होय, इस हेतुसे ग्वालोंके ग्राम में मुकाम करते हुए वे वीतभय पट्टणको गये । राजा केशी यद्यपि उदायनमुनिका
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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