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________________ (७५८) का च्यवन होने पर, वहां आ अपना रूप बता कुमारनंदीको मो. हित किया । वह जब भोगकी प्रार्थना करने लगा, तब " पंचशैलद्वीपमें आव" यह कहकर वे दोनों चली गई। पश्चात् कुमारनंदीने राजाको सुवर्ण देकर पडह बजवाया (ढिंढोरा पिटवाया ) कि, " जो पुरुष मुझे पंचशैलद्वीपमें लेजाय, उसे मैं एक करोड द्रव्य दूं।" तदनुसार एक वृद्ध नियमिक, (नाविक) करोड द्रव्य ले अपने पुत्रोंको देकर, कुमारनंदीको एक नौकामें बिठा बहुत दूर समुद्रमें लेगया । और वहां कहने लगा कि " साम्हने जो बड वृक्ष दृष्टि आता है, वह समुद्रके किनारे आई हुई पहाडीकी तलेटी में है। इसके नीचे अपनी नौका पहुंचे तब तू वडकी शाखा पर बैठ जाना; तीन पैरवाला भारंड पक्षी पंचशैलद्वीपसे आकर इसी बडपर सो रहते हैं , उसके बीचके पैरमें तूने वस्त्रसे अपने शरीरको मजबूत बांध रखना। प्रातःकालमें उक्तपक्षीके साथ तू भी पंचशैलद्वीपमें जा पहुंचेगा । यह नौका तो अब भयंकर भ्रमरमें फंस जावेगी।" तदनन्तर नाविकके कथनानुसार करके कुमारनंदी पंचशैलद्वीपमें पहुंचा और हासाग्रहासाको देख कर प्रार्थना की । तब हासा,प्रहासाने उसको कहा कि " तू इस शरीरसे हमारे साथ भोग नहीं कर सकता । इसलिये तू अग्नि प्रवेश आदि करके इस द्वीपका मालिक हो जा।' यह कह उन्होंने कुमारनंदीको हथेली पर बैठाकर चंपानगरीके उद्यानमें छोड दिया। पश्चात् उसके मित्र नागिलश्रावकने उसे
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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