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________________ ( ७३७) पास घर हो तो दुःख होता है, बाजार में हो तो हानि होती है और उग अथवा प्रधानके पास हो तो पुत्र तथा धनका नाश होता है. अपने हितके चाहनेवाले बुद्धिशाली पुरुषको चाहिये कि, मूर्ख, अधर्मी, पाखंडी, पतित चोर, रांगी, क्रोधी, चांडाल, अहंकारी, गुरुपत्नीको भोगनेवाला, बैरी, अपने स्वामीको ठगने वाला, लोभी और मुनिहत्या, स्त्रीहत्या अथवा बालहत्या करने वाला इनके पडौसको त्यागे. कुशीलआदि पडौसी होवें तो उनके वचन सुननेसे तथा उनकी चेष्टा देखनेसे मनुष्य सद्गुणी हो, तो भी उसके गुणकी हानि होती है, पडौसिनने जिसे खीर सम्पादन करके दी उस संगमनामक शालिभद्र के जीवको उत्तम पडौसीके दृष्टान्त के स्थान में तथा पर्वके दिन मुनिको वहोरानेबाली पडौसिन के सास श्वसुरको झूठमूठ समझानेवाली सोमभट्टकी स्त्रीको खराब पडौसिनको दृष्टान्तस्थान में जानो. अतिशय प्रकटस्थान में घर करना ठीक नहीं. कारण कि, आसपास दूसरे घर न होनेसे तथा चारों ओर मैदान होने से चोरआदि उपद्रव करते हैं. अतिशय घनी बसतिवाले गुप्तस्थान में भी घर होना ठीक नहीं. कारण कि चारों तरफ दूसरे घरोंके होनेसे उस घर की शोभा चली जाती है. वैसेही आगआदि उपद्रव होने पर झटसे अन्दर जाना व बाहर आना कठिन होजाता है. घरके लिये शल्य, भस्म, खात्रआदि दोषोंसे रहित तथा निषिद्धआयसे रहित ऐसा उत्तम स्थान होना चाहिये.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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