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________________ ( ७१७ ) साधर्मिक वात्सल्य, संघपूजा आदि विशेष धूमधामसे करना । लाख अथवा करोड चांवल, अडसठ सोने अथवा चांदी की कटोरियां, पाटिये, लेखनियां तथा रत्न, मोती, मूंगा, रुपयादि, नारियल आदि अनेक फल, भांति २ के पक्वान्न, धान्य तथा खाद्य और स्वाद्य अनेक वस्तुएं, वस्त्रआदि रखकर उजमणा करनेवाले, उपधान करना आदि विधि सहित माला पहिरकर आवश्यक सूत्रका उजमणा करनेवाले, गाथाकी संख्यानुसार अर्थात पांचसौ चुम्मालीस मोदक, नारियल, कटोरियांआदि विविध वस्तुएं रखकर उपदेशमालादिकका उजमणा करनेवाले, स्वर्णमुद्रा आदि वस्तु अंदर रख लड्डू आदि वस्तुकी प्रभावना करके दर्शनादिकका उजमणा करनेवाले भव्यजीव भी वर्त्तमानकालमें दृष्टिमें आते हैं । माला पहिरना यह महान धर्मकृत्य है. कारण कि. नवकार, इरियावही इत्यादि सूत्र शक्त्यनुसार तथा विधि सहित उपधान किये बिना पढना गुणनाआदि अशुद्ध क्रिया मानी जाती है, श्रुतकी आराधनाके लिये जैसे साधुओं को योग करना, वैसेही श्रावकोंको उपधानतप अवश्य करना चाहिये. माला पहिरना यही उपधान तपका उजमणा है. कहा है कि कोई श्रेष्ठ जीव यथाविधि उपधान तप करके अपने कंठमें नवकार आदि सूत्रकी माला तथा गुरुकी पहिराई हुई सूतकी माला धारण करता है, वह दो प्रकारकी शिवश्री ( निरुपद्रवता और
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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