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________________ (७१४) गंधित पुष्प और भोगआदि सकल वस्तुओंको एकत्रित करना, संगीतआदि सामग्री भली भांति तैयार करना। रेशमी वस्त्रमय महाध्वजा देना, और प्रभावनाआदि करना । स्नात्रोत्सवमें अपनी संपत्ति, कुल, प्रतिष्ठाआदिके अनुसार पूर्णशक्तिसे व्ययआदि कर आडंबर पूर्वक, जिनमतकी विशेष प्रभावना करनेका प्रयत्न करना । सुनते हैं कि पेथड श्रेष्ठीने श्रीगिरनारजी पर स्नात्रमहोत्सवके समय छप्पन धडी प्रमाण सुवर्ण देकर इन्द्रमाला पहिरी थी, और उसने श्री शत्रुजय पर तथा गिरनारजी पर एक ही सुवर्णमय ध्वजा दी। उसके पुत्र झांझण श्रेष्ठीने तो रेशमी वस्त्रमय ध्वजा दी थी इत्यादि । इसी प्रकार देवद्रव्यकी वृद्धिके निमित्त प्रतिवर्ष मालोद्घाटन करना । उसमें इन्द्रमाला अथवा दूसरी माला प्रतिवर्ष शक्तिके अनुसार ग्रहण करना । श्रीकुमारपालके संघमें मालोद्घाटन हुआ, तब वाग्भटमंत्रीआदि समर्थ लोग चार लाख, आठलाखआदि संख्या बोलने लगे, उस समय सौराष्ट्र देशान्तर्गत महुआ-निवासी प्राग्वाट हंसराज धारुका पुत्र जगडुशा. मलीनशरीरमें मलीन वस्त्र पहिरकर-ओढे हुए वहां खडा था, उसने एकदम सवा करोडकी रकम कही. राजा कुमारपालने आश्चर्य से पूछा तो उसने उत्तर दिया कि, “ मेरे पिताने नौकारुढ हो, देशदेशान्तरमें व्यापार करके, उपार्जन किये हुए
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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