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________________ (७०१) प्रमाद करे तो याद कगना, अनाचारमें प्रवृत्त होवे तो रोकना, चूके तो प्रेरणा करना और बारबार चूके तो बारम्बार प्रेरणा करना वैसेही अपने साधर्मिकोंको वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा इत्यादिकमें यथासमय बुलाना, और श्रेष्ठधर्मानुष्ठान के लिये साधारण पौषधशालाआदि बनवाना इत्यादि. श्राविकाओंका वात्सल्य भी श्रावककी भांति करना, उस में कुछ भी कम बढ न करना. कारण कि, ज्ञान, दर्शन तथा चारित्रको धारण करनेवाली उत्कृष्ट शीलको पालनेवाली तथा सन्तोषवाली ऐसी श्राविकाएं जिनधर्ममें अनुरागिणी होती है, इसलिये उनको साधर्मिकतासे मानना. ___ शंकाः--लोकमें तथा शास्त्र में स्त्रियां महादुष्ट कहलाती हैं. ये तो भूमि बिनाकी विषकदली, बिना मेघकी बिजली, जिस पर औषधि न चले ऐसी, अकारण मृत्यु, बिना निमित्त उत्पात, फण रहित सर्पिणी, और गुफा रहित वाघिनीके समान हैं. इनको तो प्रत्यक्ष राक्षसीके समानही समझना चाहिये. गुरु तथा बन्धु परका स्नेह टूटनेका कारण ये ही हैं. कहा है कि-असत्यवचन, साहस, कपट, मूर्खता, अतिलोभ, अपवित्रता, और निर्दयता ये स्त्रियोंके स्वाभाविक दोष हैं. कहा है कि--हे गौतम! जब अनंती पापराशियां उदय होती हैं, तब स्त्री-भव प्राप्त होता है, यह तू सम्यक् प्रकारसे जान. इस प्रकार समस्त शास्त्रों
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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