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________________ ( ६९८) ऐसा वचन है, जिससे असंयतपनसे जो परिभोग करना ऐसा अर्थ होता है. ऐसा प्रवचनसारोद्धारवृत्ति में कहा है. इसी प्रकार प्रातिहारिक, पीठ, फलक, पाटिया इत्यादिक संयमोपकारि सर्व वस्तुएं श्रद्धापूर्वक साधुमुनिराजको देना. सूई आदि वस्तुएं भी संयम के उपकरण हैं, ऐसा श्रीकल्पमें कहा है. यथा: "असणाई वत्थाई सूआई चउक्कगा तिनि' अर्थ:--अशनादिक, वस्त्रादिक, और सूईआदि ये तीन चतुष्क मिलकर बारह, जैसे कि, १ अशन, २ पान, ३ खादिम, ४स्वादिम ये अशनादिक चार, ५ वस्त्र, ६ पात्र, ७ कम्बल, ८ पादपोंछनक ये वस्त्रादिक चार; तथा ९ सूई, १० अस्तरा ११ नहणी और १२ कान कुचलने की सलाई ये सूहआदिक ४; इस प्रकार तीन चतुष्क मिलकर बारह वस्तुएं संयमके उपकरण हैं. इसी प्रकार श्रावकश्राविकारूप संघका भी यथाशक्ति भक्तिसे पहिरावणीआदि देकर सत्कार करे. देव, गुरु आदिके गुण गानेवाले याचकादिकों को भी यथोचित रीति से सन्तुष्ट करे. संघपूजा तीन प्रकारकी है. एक उत्कृष्ट, दूसरी मध्यम और तीसरी जघन्य. जिनमतधारी सम्पूर्ण संघको पहिरावणीदे तो उत्कृष्ट संघपूजा होती है. सर्वसंघको केवल सूत्रआदि दे तो जघन्य संघपूजा होती है. शेष सर्व मध्यम संघपूजा है. जिसमें जिसकी अधिक धन खर्च करनेकी शक्ति न होवे,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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