SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 708
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६८५) प्रकार अविद्यमान वस्तुका नियम करनेसे भी विरतिआदि महान फल होता है। सुनते हैं कि--राजगृही नगरी में एक भिक्षुकने दीक्षा ली, यह देख लोग"इसने बहुतसा धन छोडकर दीक्षा ली है !" इस प्रकार उसकी हंसी करने लगे. जिससे सुधर्मस्वामीगुरुमहाराजने विहार करनेकी वात करी. तब अभयकुमारने बाजारमें तीन करोड स्वर्णमुद्राओंका एक भारी ढेर लगाकर, सब लोगोंको बुलाया और कहा कि, "जो पुरुष कुएआदिका जल, अग्नि और स्त्रीका स्पर्श, ये तीनों यावजीव छोड दे, वह यह धन ले सकता है." लोगोंने विचार करके कहा कि- “तीन करोड धन छोडा जा सकता है, परन्तु उक्त जलआदि तीन वस्तुएं नहीं छोडी जा सकतीं." पश्चात् मन्त्रीने कहा कि, "अरे मूर्यो ! तो तुम इन द्रमकमुनिकी हंसी क्यों करते हो ? इन्होंने तो जलादि तीन वस्तुओंका त्याग करनेसे तीन करोडसे भी अधिक त्याग किया है." इससे प्रतिबोध पाकर लोगोंने द्रमकमुनिको खमाये. यह अप्राप्तवस्तुको त्यागकरनेका दृष्टान्त है। ___ इसलिये अप्राप्यवस्तुका भी नियम ग्रहण करना चाहिये. क्योंकि ऐसा न करनेसे उन वस्तुओंको ग्रहण करने में पशुकी भांति अविरतिपन रहता है, और वह नियम ग्रहण करनेसे दूर होता है। भर्तृहरिनें कहा है कि--मैने क्षमा धारण नहीं की; घरके उचितसुखका (विषयसुखका) संतोषसे त्याग नहीं किया,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy