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________________ (६७८) तब उसने अपना नियम कह सुनाया, जिससे राजा ऋद्ध होगया. परन्तु इतनेहीमें एक सरीखी धाराबंध वृष्टि होने लगी जिससे उसने मुखपूर्वक अपने नियमका पालन किया. ___इस प्रकार पर्वका नियम अखंडित पालनेसे वे तीनों व्यक्ति क्रमशः मृत्युको प्राप्त होकर छढे लांतकदेवलोकमें चौदह सागरोपम आयुष्यवाले देवता हुए. धनेश्वरश्रेष्ठी समाधिसे मृत्यु पाकर बारहवें अच्युतदेवलोकको गया. उन चारों देव. ताओंकी बडी मित्रता होगई, श्रेष्ठीका जीव जो देवता हुआ था, उसके पास अन्य तीनों देवताओंने अपने च्यवनके अवसर पर स्वी. कार कराया था कि- “तूनें पूर्वभवकी भांति आगन्तुकभवमें भी हमको प्रतिबोध करना." पश्चात् वे तीनों पृथक् पृथक राजकुलोंमें अवतरे. अनुक्रमसे तरुणावस्थाको प्राप्त हो बडे २ देशोंके अधिपति हो धीर, वीर, और हीर इन नामोंसे जगत्में प्रसिद्ध हुए. धीरराजाके नगरमें एक श्रेष्ठीको सदैव पर्वके दिन परि. पूणे लाभ हुआ करता था, परन्तु कभी २ पर्वतिथिमें हानि भी बहुत होती थी. उसने एक समय ज्ञानीको यह बात पूछी. ज्ञानीने कहा- "तूनें पूर्वभवमें दरिद्रावस्थामें स्वीकार किये हुए नियमोंको दृढतापूर्वक यथाशक्ति पर्वके दिन सम्यक्प्रकारसे पालन किये. परन्तु एक समय धर्मसामग्रीका योग होते भी तू धर्मानुष्ठान करनेमें आलस्यआदि दोषसे प्रमादी हुआ. उसीसे इसभवमें तुझे इस प्रकार लाभ हानि होती है. कहा
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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