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________________ (६७०) इरियावही प्रतिक्रमणकर, आगमनकी आलोचना कर, सम्भव हो तदनुसार अतिथिसंविभाग व्रत पालन करे. पश्चात् स्थिर आसनसे बैठकर, हाथ, पैर तथा मुखका पडिलेहणकर एक नवकार गणनाकर राग द्वेष न रखते प्रासुकअन्न भक्षण करे. अथवा प्रथमहीसे कह रखे हुए स्वजनका लाया हुआ अन्न भक्षण करे, किन्तु भिक्षा न मांगे. पश्चात् पोषधशालाको जा कर इरियावही प्रतिक्रमण कर, देववन्दन कर, वन्दना दे.तिविहार अथवा चउविहारका पञ्चखान करे. जो शरीर चिन्ता करना होवे तो, "आवस्सई” कहकर साधुकी भांति उपयोग रखता हुआ जीव रहित शुद्धभूमिमें जा, विधिके अनुसार मलमूत्रका त्यागकर, शुद्धताकर पौषधशालाको आवे. पश्चात् इरियावही प्रतिक्रमण कर एक खमासमण देकर कहे कि, "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गमणागमणं आलो? पश्चात् "इच्छं" कहकर "आवस्सई" करके वसतिसे पश्चिम तथा दक्षिण दिशाको जाकर दिशाओंको देखकर "अणुजाणह जस्सुग्गहो" ऐसा कहकर पश्चात् संडासग और स्थांडल प्रमार्जन करके बडीनीति तथा लघुनीति वोसिराइ (त्याग की) तत्पश्चात् "निसिही" कहकर पौषधशालामें प्रवेश किया. और "आवंततेहि जं खंडिअं जं विराहि तस्स मिच्छामि दुक्कडं" ऐसा कहे. पश्चात् पिछला प्रहर हो तब तक सज्झाय करे. तत्पश्चात् एक खमासमण देकर पडिलेहणका आदेश मांगे. दूसरा खमासमण देकर पौषधशाला
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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