SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६६७) ली हो उसी पर मनुष्य जीवित रहते हैं. वर्षा ऋतु ( साधण भादवा ) में लवण, शरदऋतु ( आसोज-कार्तिक ) में जल, हेमन्त (मार्गशीर्ष, पौष ) ऋतु में गायका दूध, शिशिर(माह, फाल्गुण) ऋतुमें आमलेका रस, वसन्त (चैत्र, वैसाख)ऋतुमें घी और ग्रीष्म (ज्येष्ठ, आषाढ) ऋतु में गुड अमृत के समान है. पर्वकी महिमा ऐसी है कि, जिससे प्रायः अधर्मीको धर्म करनेकी, निर्दयको दया करनेकी, अविरतिलोगोंको विरति अंगीकार करनेकी, कृपणलोगोंको धन खर्च करनेकी, कुशीलपुरुषोंको शील पाल नेकी और कभी २ तपस्या न करनेवालेको भी तपस्या करनेकी बुद्धि होजाती है यह बात वर्तमानमें सर्वदर्शनोंमें पाई जाती है. कहा है कि जिन पर्वोके प्रभावसे निर्दय और अधर्मी पुरुषोंको भी धर्म करनेकी बुद्धि होती है, ऐसे संवत्सरी और चौमासीपों की जिन्होंने यथाविधि आराधना की उनकी जय हो. इसलिये पर्वमें पौषध आदि धर्मानुष्ठान अवश्य करना. पौषधके चार प्रकार आदि विषयों का वर्णन अर्थदीपिका (मूलग्रन्थकारविरचित) में किया गया है.. पौषध तीन प्रकारके हैं:--१ अहोरात्रिपौषध, २ दिवसपौषध और ३ रात्रिपौषध. . अहोरात्रिपौषधकी विधि इस प्रकार है:--श्रावकने जिस दिन पौषध लेना होवे, उस दिन सर्व गृहव्यापारका त्याग
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy