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________________ ( ६६४ ) तथा तीर्थकरके जन्मादि कल्याणक इत्यादिमें जो यात्राएं करते हैं वे अशाश्वती हैं. जीवाभिगमसूत्र में भी इस प्रकार कहा है कि- बहुतसे भवनपति, वाणमंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवता नंदीश्वरद्वीप में तीन चातुर्मास तथा संवत्सरी पर अपारमहिमा अट्ठाइ महिमा करते हैं. प्रभात समय में पच्चखान करने के वक्त जो तिथि आवे वही ग्रहण करना. सूर्योदयका अनुसरण कर ही के लोकमें भी दिवस आदि सर्व व्यवहार चलता है. कहा है कि चा उन्मासिअ वरिसे, पक्खिअ पंचट्ठमीसु नायव्वा ॥ ताओ तिही जासिं, उदेइ सूरो न अण्णाओ ॥ १ ॥ पूआ पच्चक्खाणं पडिकमणं तय नियमगणं च ॥ जीए उदेद्द सूरो, तीइ तिहीए उ कायध्वं ॥ २ ॥ उदयं भिजा तिही सा, पमाणमियरीइ कीरमाणीए || आणाभंगऽणवत्था, मिच्छत्त विराहणं पावे ॥ ३ ॥ पाराशरस्मृति आदि ग्रंथमें भी कहा है कि- जो तिथि सूर्योदय के समय थोडी भी होय, वही तिथि संपूर्ण मानना चाहिये, परन्तु उदय के समय न होने पर वह पश्चात् बहुत काल तक हो तो भी संपूर्ण नहीं मानना । श्री उमास्वातिवाचकका वचन भी इस प्रकार सुनते हैं कि - पर्वतिथिका क्षय होवे तो उसकी पूर्वकी तिथि करना, तथा वृद्धि होवे तो दूसरी और श्रीवीर भगवान् के ज्ञान तथा निर्वाणकल्याणक ܀
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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