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________________ (६६१) पालन करना, आरम्भ त्यागना, उपवास आदि तपस्या शक्त्यानुसार पहिलेसे अधिक करना. गाथामें आदिशब्द है, उससे स्नात्र, चैत्यपरिपाटी, सर्वसाधुओंको वन्दना, सुपात्रदानआदि करके, नित्य जितना देवगुरुपूजन, दानआदि किया जाता है, उसकी अपेक्षा पर्वके दिन विशेष करना. कहा है कि-- जो प्रतिदिन धर्मक्रिया सम्यक् प्रकारसे पालो, तो अपार लाभ है; परन्तु जो वैसा न किया जा सकता हो तो, पर्वके दिन तो अवश्यही पालो. विजयादशमी (दशहरा), दीपमालिका, अक्षयतृतीया, आदि लौकिकपोंमें जैसे मिष्ठान्नभक्षणकी तथा वस्त्रआभूषण पहिरनेकी विशेष यतना रखी जाती है, वैसे धर्मके पर्व आने पर धर्म में भी विशेष यतना रखना चाहिये. अन्यदर्शनी लोग भी एकादशी, अमावस्या आदि पर्यों में बहुतसा आरम्भ त्यागते हैं, और उपवासादि करते हैं, तथा संक्रान्ति, ग्रहण आदि पों में भी अपनी पूर्णशक्तिसे दानादिक देते हैं. इसलिये श्रावकने तो समस्तपर्वदिवसोंको अवश्य पालना चाहिये. पर्व दिन इस प्रकार हैं:--अष्टमी २, चतुर्दशी २, पूर्णिमा १, और अमावस्या १ ये छः पर्व प्रत्येकमासमें आते हैं, और प्रत्येक पक्षमें तीन (अष्टमी १, चतुर्दशी १, पूनम १ अथवा अमावस्या १) पर्व आते हैं. इसी प्रकार "गणधर श्रीगौतमस्वामीने बीज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी" ये पांच श्रुततिथियां ( पर्वतिथियां) कही हैं. बीज दो प्रकार
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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