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________________ (६१३) हुआ, तब उसने चौबीस हजार मन धान्य अनाथलोगों को दिया, एक हजार बन्दियोंको छुडाया, छप्पन राजाओं को छुडाया, जिनमंदिर खुलवाये, श्रीजयानन्दसूरि तथा श्रदिव सुन्दरसूरिके पगले स्थापित किये इत्यादि उसके बहुत से धर्मकृत्य प्रसिद्ध हैं. इसलिये श्रावकने विशेषकर भोजन के समय अनुकम्पादान अवश्य करना चाहिये. दरिद्री मनुष्यने भी घर में अन्न आदि इतना बनाना कि, जिससे कोई गरीब आवे तो यथाशक्ति उसकी आसना वासना की जा सके. इसमें कोई विशेष खर्च भी नहीं होता. कारण कि गरीब लोगों को थोडेहीमें सन्तोष हो जाता है. कहा है कि-- कवल ( ग्रास ) में से एक दाना नीचे गिर पडे तो हाथी के आहार में तो उससे क्या कमी हो सकती है ? परन्तु उसी एक दाने पर कीडीका तो सम्पूर्ण कुटुम्ब निर्वाह कर लेता है. दूसरे उपरोक्त कथनानुसार ऐसा निरवद्य आहार किंचित अधिक तैयार किया हो तो उससे सुपात्रका योग मिल जाने पर शुद्ध दान भी दिया जा सकता है। इसी प्रकार माता, पिता, बन्धु, भगिनी, पुत्र, कन्या, पुत्रवधू, सेवक, रोगी, कैदी तथा गाय आदि जानवरों को उचित भोजन दे, पंचपरमेष्ठीका ध्यानकर तथा पञ्चखान और मयानका यथोचित उपयोग रख करके रुचिके अनुसार भोजन करना. कहा है कि - उत्तमपुरुषोंने प्रथम पिता, माता, बालक, गर्भिणी, वृद्ध, और रोगी इनको भोजन करा पश्चात् स्वयं भोजन करना.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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