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________________ (६०३) ही उत्तम किया. इन्द्रका सेनापति हरिणेगमेषी नामक श्रेष्ठदेवता अन्यदेवताओंके सन्मुख तेरी प्रशंसा करता है, वह योग्य है." यह सुन रत्नसारकुमारने चकित हो पूछा कि, "हरिणेगमेषी देवता मुझ तुच्छ मनुष्यकी प्रशंसा क्यों करता है ?" देवताने कहा-"सुन. एक समय नये उत्पन्न हुए होनेके कारण साधर्मेन्द्र और ईशानेन्द्र इन दोनोंमें विमानके विषयमें विवाद हुआ. सौधर्मेंद्रके विमान बत्तीस लाख, और ईशानेंद्र के अट्ठावीस लाख होते हैं. वे परस्पर विवाद करने लगे. उन दोनोंमें दो राजाओंकी भांति बाहुयुद्ध आदि अन्य भी बहुतसे युद्ध अनेक बार हुए तिर्यंचोंमें कलह होता है तो मनुष्य शीघ्र उन्हें शांत करते हैं; मनुष्योंमें कलह होता है तो राजा समझाते हैं; राजाओंमें कलह होता है तो देवता समाधान करते हैं; देवताओंमें कलह होता है तो उनके इन्द्र मिटाते हैं। परन्तु जो इन्द्र ही परस्पर कलह करे तो वज्रकी अग्निके समान उनको शांत करना कठिन है. कौन व किस प्रकारसे उनको रोक सकता है ? पश्चात् महत्तरदेवताओंने माणवकस्तंभ परकी अरिहंतप्रतिमाका आधि, व्याधि, महादोष और महाबैरका नाशक न्हवणजल उन पर छिडका, जिससे वे दोनों शीघ्र शांत हो गये. न्हवणजलकी ऐसी महिमा है कि, उससे कोई कार्य असंभव नहीं. पश्चात् उन दोनोंने पारस्परिक बैर त्याग
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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