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________________ (५८७) जागृत होनेवाली होती है. कुमार यह विचार कर ही रहा था कि " यह कौन है ? और किस लिये व किस प्रकार शय्यागृह में घुसा ?" इतनेहीमें उस पुरुषने उच्चस्तरसे कहा- " अरे कुमार ! जो तू शूरवीर होवे तो संग्राम करने के लिये तैयार हो. जैसे सिंह धूर्तशृंगालके झूठे पराक्रमको सहन नहीं करता, वैसे तेरे समान एक वणिकके झूठे पराक्रमको क्या मैं सह सकता हूं ? " यह बोलते २ ही वह पुरुष तोतेका सुन्दर पींजरा उठा उतावलसे चलने लगा. कपटीमनुष्योंके कपटके सन्मुख बुद्धि काम नहीं देती. अस्तु, कुमार भी क्रोध आजानेसे म्यानमेंसे तलवार बाहर निकाल उसके पीछे दौडा, आगे २ वह पुरुष और पीछे २ कुमार दोनों जल्दी जल्दी चलते एक दूसरेको देखते मागेमें आये हुए कठिन प्रदेश, घरआदिको सहजमें उल्लंघन करते हुए आगे बढदे ही जा रहे थे. जैसे दुष्ट चौकीदार ( भूमिहार ) मुसाफिरको आडे मार्गसे ले जाता है वैसेही वह दिव्यपुरुष कुमारको बहुतही दूर कहीं ले गया और अन्तमें किसीप्रकार कुमारके हाथ आया. कुमार क्रोधवश उसे पकडने लगा इतनेहीमें वह देखतेही देखते गरूडकी भांति आकाशमें उड गया. व कुछ दूर जाकर अदृश्य होगया. कुमार विचार करने लगा कि- " निश्चय यह मेरा कोई शत्रु है. कौन जाने विद्याधर, देव कि दानव है ? कोई भी हो. मेरा यह क्या नुकसान करनेवाला था ? परन्तु मेरे तोतेरूपी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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