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________________ ( ५८२) देवीको नमन किया। तब उसने पतिपुत्रवाली वृद्धा स्त्रीकी तरह यह आशीष दिया-हे वधूवरो! तुम सदैव प्रीति सहित साथ रहो और चिरकाल सुख भोगो, पुत्र पौत्रादिसंततिसे जगत में तुम्हारा उत्कर्ष हो ।" पश्चात् उसने स्वयं अग्रसर होकर चौरीआदि सर्व विवाहसामग्री तैयार करी, और देवांगनाओंके धवलगीत गाते हुए यथाविधि महान् आडंबरके साथ उनका विवाहोत्सव पूर्ण किया. देवांगनाओंने उस समय तोतेको वरके छोटे भाईके समान मान कर उसके नामसे धवलगीत गाये महान् पुरुषोंकी संगतिसे ऐसा आश्चर्यकारी फल होता है. उन कन्याओं व कुमारके पुण्यका अद्भुत उदय है कि जिनका विवाहमंगल स्वयं चक्रेश्वरीदेवीने किया. पश्चात् उसने सौधर्मावतंसक विमानके सदृश वहां एक रत्नजड़ित महल बना कर उनको रहने के लिए दिया.वह महल विविध प्रकारकी क्रीड़ा करनेके सर्व स्थान पृथक् २ रचे हुए होनेसे मनोहर दीखता था. सात मंजिल होनेसे ऐसा भास होता था मानो सातद्वीपोंकी सातलीक्ष्मयोंका निवास स्थान हो, हजारों उत्कुष्ट झरोखोंसे ऐसा शोभा देता था मानो सहस्रनेत्रधारी इन्द्र हो, चित्ताकर्षक मत्तवारणोंसे विंध्यपर्वतके समान दीखता था, किसी २ स्थानमें कर्केतनरत्नोंका समूह जड़ा हुआ था जिससे गंगानदीके समान मालूम होता था, कहीं कहीं बहुमूल्य वैडूर्यरत्न जड़े हुए होनेसे जमुनानदीसा प्रतीत होता था, कोई कोई स्थान परागरत्न जड़ित होनेसे संध्याके समान
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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