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________________ (५७१) उसकी अभेद्य छातीमें प्रहार किया. बडाही आश्चर्य है कि एक वणिक्कुमारमें भी ऐसा अलौकिक पराक्रम था. विद्याधरराजाकी छातीसे रक्तका झरना बह निकला. प्रहारसे दुःखित व शस्त्र रहित होनेसे वह पानखर ऋतुमें पत्र होते हुए पीपलवृक्षके समान होगया. इस अवस्थामें भी उसने बहुरुपिणी विद्या द्वारा वेग बहु होनेके लिये क्रोधित हो बहुतसे रूप प्रकट किये. वे असंख्यरूप पवनके तूफानकी भांति संपूर्ण जगत्को बडे भयानक हुए. प्रलयकालके भयंकर बादलोंके समान उन रूपोंसे सर्व प्रदेश रुकाहुआ होनेसे आकाश इतना भयानक हो गया कि देखा नहीं जा सकता था. कुमारने जहां २ अपनी दृष्टि फेरी वहां उसे भयंकर भुजाओंके समुदाय युक्त विद्याधरराजा नजर आया, परन्तु उसे लेश मात्रभी भय न हुआ. धीरपुरुष कल्पान्त काल आ पडने पर भी कायर नहीं होते. पश्चात् कुमारने बेनिशान चारों ओर बाणवृष्टि शुरु करी. ठीक ही है, संकट समय आने पर धीरपुरुष अधिक पराक्रम प्रकट करते हैं . कुमारको भयंकर संकटमें फंसा हुआ देखकर चन्द्रचूडदेवता हाथमें विशाल मुद्गर लेकर विद्याधरराजाको प्रहार करनेके लिये उठा. गदाधारी भीमसेनकी भांति भयंकर रूपधारी चन्द्रचूडदेवताको आता देख दुःशासन समान विद्याधरराजा बडा क्षुभित हुआ. तथापि वह धैर्यके साथ अपने सर्वरूपसे, सर्वभुजाओंसे, सर्वशक्तिसे और सर्व तरफसे
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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