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________________ ( ५६१ ) तेरेही समान था. हे महामना ! उस तापसकुमारने स्वाभाविकप्रेमसे मेरा जो आदरसत्कार किया, उस सर्व बातका स्वकी भांति विरह होगया, यह बात जब जब याद आती है तब तब मेरा मन अभी भी टुकडे होता हो, अथवा जलता हो ऐसा प्रतीत होता है. मुझे ऐसा जान पडता है कि तू वही तापसकुमार है अथवा वह तेरी बहिन होगी. कारणकि, दैवगति विचित्र होती है." कुमार यह कह रहा था इतनेमें उक्त चतुर तोता कलकलशब्द से कहने लगा कि, " हे कुमार ! मैंने यह बात प्रथम ही से जान ली थी और तुझे कहा भी था. मैं निश्चयपूर्वक कहता हूं कि वह तापसकुमार वास्तवमें कन्या ही है, और इसकी बहिन ही है. मेरी समझ से मास पूर्ण हो गया है, इससे आज किसी भी भांति उसका मिलाप होवेगा. ' तिलकमंजरीने तोते के ये वचन सुनकर कहा कि, हे शुक ! जो मैं जगत् में सारभूत मेरी बहिनको देखूंगी, तो तेरी कमलसे पूजा करूंगी." इत्यादि रत्नसार और तिलकमंजरीने तोते की प्रशंसा करी. इतने ही में मधुरशब्दवाले नेउरसे शोभित, मानो आकाशमेंसे चन्द्रमंडली ही गिरती हो ! ऐसी भ्रांति उत्पन्न करनेवाली, अतिशय लंबा पंथ काटने से थकी हुई तथा दूसरी हंसनियां डाहसे, हंस अनुरागदृष्टिसे और कुमारआदि आश्चर्य तथा प्रीति से जिसके तरफ देखते रहे हैं ऐसी एक दिव्य हंसिनी रत्नसारकुमारकी गोद में पड लोटने लगी. और मानो असीमप्रीति ही से
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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