SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३५ ) यथो चित समय पर शुभ दिवस, शुभ लग्नमें पूर्व दिशामें पूर्ण चन्द्रमाके समान रानी कमलमालाके गर्भसे सुपुत्रका प्रसव हुआ। पट्टरानीका पुत्र हानेसे अन्य पुत्रकी अपेक्षा इसका जन्मोत्सव विशेषता से मनाया गया। तीसरे दिन राजाने आनन्दोत्सव सहित उस पुत्रको सूर्य चन्द्रमाका दर्शन कराया । छठे दिन राज्योचित धुमधामसे रात्रिजागरण किया । तत्पश्चात् शुभ मुहूर्त देखकर स्वप्नके अनुसार उसका 'शुकराज' नाम रखा। पंच समितिसे रक्षित धर्मकी भांति पांच धायमाताओंसे पलता हुआ शुकराज नवचन्द्रकी भांति बढने लगा। राज्य कुलकी रीतिके अनुसार राजाने अन्नप्राशन, रिंखण (घुटने चलना), चालण (चलना) वचन ( बोलना), वस्त्राच्छादन ( कपडे पहराना), वर्षगांठ इत्यादिक सर्व कार्य बडे आनन्दोत्सवसे किये । क्रमशः शुकराज पांच वर्षका हुआ । इतने अल्पायुमें भी जिस भांति पांच वर्षका आम्रवृक्ष सुमधुर फल देता है उसी भांति वह जो कुछ भी कार्य करता था उसका फल भी सर्वदा उत्तम ही होता था। परिपूर्ण सर्व सद्गुणोंने मनहीमन स्पर्धा रख कर इन्द्रपुत्र जयन्तकी रूपसंपदाको जीतने वाले शुकराजका आश्रय लिया । यह बालक बोलनेकी चतुरता, मधुरता, पटुता तथा भावपूर्णता आदि गुणोंसे विद्वानोकी भांति सज्जनोंके मनको आनन्दित करने लगा। एक समय वसन्तऋतुमें जब कि सारा उद्यान सुन्दर.
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy