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________________ (५५५) देख रही थीं, इतनेमें दुर्भाग्यवश प्रचंड पवनके वेगसे अकस्मात् हिंडोला टूट गया और उसके साथ ही लोगोंके मनका क्रीडारस भी नष्ट होगया । शरीरमेंकी नाडी टूटनेसे जैसे लोग आकुलव्याकुल होते हैं वैसे ही हिंडोलेके टूटते ही सब लोग व्याकुल हो हाहाकार करने लगे। इतने ही में मानो आकाशमें कौतुकसे गमन करती होय इस तरह अशोकमंजरी हिंडोले सहित वेगसे आकाशमें जाती हुई दृष्टिमें आई । तब लोग उच्चस्वरसे कोलाहल करने लगे कि, " हाय हाय ! कोई यमके समान अदृश्यपुरुष इसको हरण किये जारहा है ! !" प्रचंड मनुष्य और बाणोंके समूहको धारण करनेवाले, शत्रुको सन्मुख न टिकने देनेवाले शूरवीर पुरुष झडपसे वहां आये व खडे रह कर ऊंचीदृष्टिसे अशोकमंजरीका हरण देख रहे थे, परन्तु वे कुछ भी न कर सके । ठीक ही है अदृश्य अपराधीको कौन शिक्षा कर सकता है ? राजा कनकध्वज कानमें शूल उत्पन्न करे ऐसा कन्याका हरण सुनकर क्षणमात्र वज्रप्रहारसे पीडित मनुष्यकी भांति अतिदुःखित हुआ । “ हे वत्से ! तू कहां गई ? तू मुझे दर्शन क्यों नहीं देती ? हे शुद्धचित्ते ! क्या तूने पूर्वका अपार प्रेम छोड दिया ? हाय हाय ! !” राजा विरहातुर हो इस प्रकार शोक कर रहा था, कि इतने में एक सेवकने आकर कहा-"हाय हाय ! हे स्वामिन् ! अशोकमंजरीके शोकसे जर्जरित तिलक
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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