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________________ (५४३) हैं ? अतएव हे कुमार ! मेरा यथार्थ वृत्तांत्त तेरे समक्ष कहता हूं. वास्तविक प्रीति रखनेवाले पुरुषके सन्मुख कौनसी बात गुप्त रखी जा सकती है ?" तापसकुमार यह बोल ही रहा था इतनेमें, मदोन्मत्त हाथीके समान वनको वेगसे समूल उखाड़ डालने वाला, एक सरीखी उछलती हुई धूलके समुदायसे तीनों जगतको अपूर्व घनघोर गर्दमें अतिशय गर्क करनेवाला, महान् भयंकर घूत्कारशब्दसे दिशाओंमें रहनेवाले मनुष्योंके कानको भी जर्जर कर डालनेवाला, तापसकुमारके आत्मवर्णन कहनेके मनोरथरूप रथको बलात्कार तोड कर अपने 'प्रभंजन' नामको सार्थक करनेवाला अकस्मात् चढ आये हुए महानदीके पूरकी भांति समग्रवस्तुओंको डुबानेवाला तथा तूफानी, दुष्ट उत्पातपवनकी भांति असह्य पवन तीव्रवेगसे बहने लगा, और काबेलचोरकी भांति मानो मंत्र ही से, रत्नसार और तोतेकी दृष्टि धूलसे बंद करके वह पवन तापसकुमारको उडा ले गया. कुमार व तोतेको केवल उसका निम्नांकित आर्तनाद सुन पड़ा. यथाः "हाय हाय ! महान् आपदा आ पड़ी !! हे सर्वलोगोंके आधार, अतिशय सुन्दर, सम्पूर्ण लोगोंके मनके विश्रांतिस्थान, महापराक्रमी, जगतरक्षक कुमार ! इस संकटमेंसे मेरा रक्षण कर, रक्षण कर !" क्रोधसे युद्धातुर हो रत्नसार- "अरे दुष्ट ! मेरे प्राणजीवन तापसकुमारको हरण करके कहां जाता है ?"
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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