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________________ ( ५४१ ) : फिराई और थोडी २ सब वस्तुएं भक्षण करी. पश्चात् तापस कुमारने तोते को भी उत्तमोत्तम फल व अश्वको उनके अनुकूल वस्तु खिलाई. ठीक है- महान् पुरुष किसी समय भी उचित - आचरण नहीं छोड़ते. तदनंतर रत्नसारकुमारका अभिप्राय समझ तोता तापसकुमारको प्रीति पूर्वक पूछने लगा कि, " हे तापसकुमार ! जिसको देखते ही शरीर पुलकित हो जाता है ऐसे इस नवयौवन में कल्पना भी नहीं की जा सके ऐसा यह तापसत तूने क्यों ग्रहण किया ? कहां तो सर्वसंपदाओं के सुरक्षित कोटके समान यह तेरा सुंदर स्वरूप, और कहां यह संसार पर तिरस्कार उत्पन्न करनेवाला तापसव्रत ? जैसे अरण्य में मालतीका पुष्प किसीके भोग में न आकर व्यर्थ सूख जाता है. वैसे ही तूने तेरा यह चातुर्य और सौंदर्य प्रथम ही से तापसव्रत ग्रहण कर निष्फल कैसे कर डाला ? दिव्यअलंकार और दिव्यवेष पहिरने लायक यह कमलसे भी कोमल शरीर - अतिशय कठोर बन्कलों को किस प्रकार सहन कर सकता है ? दर्शककी दृष्टिको मृगजाल सदृश बंधन में डालनेवाला तेरा यह केशपाश क्रूरजटाबंधको सहने योग्य नहीं. तेरा यह सुन्दर तारुण्य और पवित्र लावण्य यथायोग्य नये नये भोगोपभोगों से शून्य होनेके कारण हमको बहुत दया उत्पन्न करता है. इसलिये हे तापसकुमार ! वैराग्य से, कपटचातुरीसे, दुर्दैववश हीन - कर्मसे, किसीके बलात्कारसे, किसी महातपस्वीके शापसे अथवा
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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