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________________ (५३६) प्रकार चारों ओर दृष्टि आती थी। मानो कौतुकसे उत्सुक हुए कुमारके मनकी प्रेरणा ही से झडपके भूमिका उल्लंघन करने वाले उस अश्वने अपनी थकावटकी ओर जरा भी ध्यान नहीं पहुंचाया । इस तरह वह अत्यंत भिल्लसैन्य युक्त महाभयंकर 'शबरसेना' नामक घोरवनमें आया। वह बन सुननेवालेको भय व उन्माद करनेवाला, तथा अत्यंत तीक्ष्णजंगलीजानवरोंकी गर्जनासे ऐसा लगता था मानो संपूर्णवनों में अग्रसर यही वन है । गज, सिंह, बाघ, सूअर पाडे आदि मानो कुमारको कौतुक दिखाने ही के लिये चारों ओर परस्पर लड रहे थे. शियालोंका शब्द ऐसा मालूम होता था कि मानो अपूर्ववस्तुके लाभ लेनेके व कौतुक देखने के लिये वे कुमारको शीघ्र बुला रहे हैं । उस बनके वृक्ष अपनी धूजती हुई शाखासे अश्वके द्रुत वेगको देख कर चमत्कार पा नतमस्तक हो रहे थे । स्थान २ पर कुमारका मनोरंजन करनेके निमित्त भिल्लयुवतियां किन्नरियोंकी भांति मधुरस्वरसे उद्भट गीत गा रही थीं। आगे जाकर रत्नसारकुमारने हिंडोले पर झूलते हुए एक तापसकुमारको स्नेहभरी दृष्टिसे देखा । वह तापसकुमार मृत्युलोकमें आये हुए नागकुमारके सदृश सुंदर था । उसकी दृष्टि प्रियबांधवके समान स्नेहयुक्त नजर आती थी; और उसे देखते ही ऐसा प्रतीत होता था, कि मानो अब देखनेके योग्य वस्तु न रही। उस तापसकुमारने ज्योंही कामदेवके
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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