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________________ (५१४) जाना हो तो लकडी लेकर जाना । जूते, वस्त्र और माला ये तीनों वस्तुएं किसीकी पहिरी हुई हों तो धारण नहीं करना । स्त्रियोंमें ईर्ष्या नहीं करना तथा अपनी स्त्रीका यत्नपूर्वक रक्षण करना, ईर्ष्या रखनेसे आयुष्य घटता है, अतएव उसका त्याग करना । हे महाराज ! संध्यामें जलका व्यवहार, दही और सत्तू वैसे ही रात्रिमें भोजनका त्याग करना, चतुर मनुष्यने आधिक देर तक घुटने ऊंचे करके नहीं सोना, गोदोहिका ( उंकई ) आसनसे नहीं बैठना तथा पगसे आसन बैंचकर भी न बैठना । बिल्कुल प्रातःकालमें, बिल्कुल संध्याके समय, ठीक मध्यान्हमें, अकस्मातसे अथवा अजानमनुष्य के संगमें कहीं भी गमन न करना । हे महाराज ! बुद्धिशाली पुरुषोंने मलीनदर्पणमें अपना मुंह आदि न देखना तथा दीर्घायुके इच्छुक मनुष्यने रात्रिमें भी अपना मुख दपेणमें नहीं देखना चाहिये । हे राजन् ! पंडितपुरुषने एक कमल (सूर्यविकासी कमल) और कुवलय ( रक्त कमल ) छोडकर लालमाला धारण नहीं करना, बल्कि सफेद धारण करना । हे राजन् ! सोते देवपूजा करते तथा सभामें जाते पहरनेके वस्त्र भिन्न २ रखना । बोलनेकी तथा हाथ पगकी चपलता, अतिशय भोजन, शय्याके ऊपर दीपक तथा अधमपुरुष और खम्भेकी छाया इतनी वस्तुओंसे अवश्य दूर रहना. नाक खुतरना नहीं, स्वयं अपने जूते नहीं उठाना, सिर पर बोझ नहीं उठाना, पानी बरसते समय न
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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