SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 509
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४८६) राजा भोजके राज्यान्तर्गत धारानगरीमें एकघरके अंदर अत्यन्त कुरूप और निर्दयी पुरुष तथा अतिरूपवती व गुणवान स्त्री थी। दूसरे घर में इससे प्रतिकूल याने पुरुष उत्तम और स्त्री कुरूप थी । एक समय दोनों जनोंके घरमें चोरोंने खात्र पाडा ( सेंध लगाई ) और दोनों बेजोडोंको देखकर कुछ न बोलते सुरूप स्त्री सुरूप पुरुषके पास और कुरूप स्त्री कुरूप पुरुषके पास बदल दी । जहां सुरूपको सुरूपका योग हुआ, वे दोनों स्त्री पुरुष पहिले बहुत उद्विग्न थे अतः बहुत हर्षित हुए, परन्तु जिसको कुरूप स्त्री मिली उसने राजसभामें विवाद चलाया । राजाने डौंडी पिटवाई, तब चोरने आकार कहा कि, " हे महाराज ! रात्रिमें परद्रव्यका हरण करनेवाले मैंने वि. धाताकी भूल सुधारी व एक रत्नका दूसरे रत्नके साथ योग किया।" चोरकी बात सुनकर हंसते हुए राजाने वही बात कायम रखी। विवाहके भेद आदि आगे कहे जावेंगे । उसे घरके कार्यभारमें लगाना " ऐसा कहनेका यह कारण है कि, घरके कार्यभारमें लगा हुआ पुत्र सदैव घरकी चिंतामें रहनेसे स्वच्छन्दी अथवा मदोन्मत्त नहीं हो जाता। वैसे ही धन कमानेके कष्टका अनुभव होजानेसे अनुचित व्यय करनेका विचार भी न कर सके । “घरकी मालिकी सौंपना " यह कहा, उसका कारण यह है कि, बडे पुरुषोंके छोटोंके सिर पर योग्य वस्तु सौंप देने
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy