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________________ ( ४८४ ) अर्थ :-- स्त्रीको रोगादिक होवे तो पुरुष उसकी उपेक्षा न करे, तपस्या, उजमणा, दान, देवपूजा, तीर्थयात्रा आदि धर्मकृत्यों में स्त्रीका उत्साह बढाकर उसे द्रव्य आदि देकर उसकी सहायता करे, अंतराय कभी न करे । कारण कि पुरुष स्त्रीके पुण्यका भागीदार है । तथा धर्मकृत्य कराना यही परम उपकार है । इत्यादि पुरुषका स्त्री के सम्बन्ध में उचित आचरण जानो । (१८) अब पुत्रके सम्बन्ध में पिताका उचित आचरण कहते हैंपुत्तं प पु उचिअं, पिउणो लालेइ बालभावंभि ॥ उम्पिलिअबुद्धिगुणं, कलासु कुसलं कुणइ कमसो ॥ १९॥ पिता बाल्यावस्था में पौष्टिक अन्न, स्वेच्छा से हिरना फिरना, नानाभांतिके खेल आदि उपायोंसे पुत्रका लालन पालन करे, और उसकी बुद्धिके गुण खिलें तब उसे कलाओं में कुशल करे । बाल्यावस्था में पुत्रका लालन पालन करनेका यह कारण है कि, उस अवस्थामें जो उसका शरीर संकुचित और दुबला रहे तो वह फिर कभी भी पुष्ट नहीं हो सका, इसीलिये कहा है किलालयेत्पच वर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् । " प्राप्ते षोडश वर्षे पुत्रं मित्रमिवाचरेत् ॥ १ ॥ " पुत्रका पांच वर्षकी अवस्था होने तक लालन पालन करना, उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात् पन्द्रह वर्षकी अवस्था तक ताडना करना और सोलहवां वर्ष लग जाने पर पिताने पुत्रके साथ मित्रकी भांति बर्ताव करना चाहिये । ( १९ )
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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