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________________ (४८२) कदाचित् कोई गुप्त बात उसके मुखसे प्रकट होनेसे राज्यद्रोह का विवाद भी खड़ा हो जावे, इसीलिये घरमें स्त्रीका मुख्य चलन नहीं रखना चाहिये । कहा है कि- "स्त्री पुंवर प्रभवति यदा तद्धि गेहं विनष्टम्" (स्त्री पुरुषके समान प्रबल होजावे तो वह घर धूलमें मिल गया ऐसा समझो.) इस विषय पर एक दृष्टान्त कहते हैं, किः-- किसी नगरमें मंथर नामक एक कोली था । वह बुननेकी लकडीआदि बनानेके लिये जंगलमें लकडी लेने गया। वहां एक शीसमके वृक्षको काटते हुए उसके अधिष्ठायक व्यंतरने मना किया, तो भी वह साहसपूर्वक तोडने लगा, तब व्यंतरने उसको कहा- वर मांग" कोली स्त्रीलंपट होनेके कारण स्त्रीको पूछने गया । मार्गमें उसका एक नाई मित्र मिला. उसने सलाह दी कि " तू राज्य न मांग ।" तो भी उसने स्त्रीको पूछा । स्त्री तुच्छ स्वभावकी थी इससे एक बचन उसे स्मरण हुआ कि प्रवर्धमानः पुरुषस्त्रयाणामुपघात्कृन् । पूर्वोपार्जितमित्राणां, दाराणामथ वेश्मनाम् ॥१॥ अर्थः- पुरुष लक्ष्मीके लाभसे विशेष बृद्धिको प्राप्त हो जावे तो अपने पुराने मित्र, स्त्री और घर इन तीन वस्तुओंको छोड देता है । यह विचार कर उसने पतिसे कहा कि, अत्यन्त दुखदायी राज्य लेकर क्या करना है ? दूसरे दो हाथ और एक
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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