SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 497
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७४) अर्थः- भाई अपने भाईको भिन्नभाव न बतावे, मनका सर्व अभिप्राय कहे, उसका अभिप्राय पूछे, उसको व्यापारमें प्रवृत्त करे, तथा द्रव्यादि भी गुप्त न रखे । " व्यापारमें प्रवृत्त करे " ऐसा कहनेका यह कारण है कि, जिससे वह व्यापारमें होशियार होवे तथा ठगलोगोंके ठगने में न आवे । 'द्रव्य गुप्त न रखे" ऐसा जो कहा उसका कारण यह है कि, मनमें दगा रखकर द्रव्य न छुपावे, परन्तु संकटके समय निर्वाह करनेके लिये तो गुप्त रखे ही । इसमें दोष नहीं है । (९) यदि कुसंगतिसे अपना भाई ढीठ होजावे तोअविणीअं अणुअत्तइ, मित्त हतो रहो उबालभइ ।। सयणजणाओ सिक्खं, दावइ अन्नावएसेणं ॥ १० ॥ अर्थः- विनयहीन हुए अपने भाईको उसके मित्रद्वारा समझावे, स्वयं एकान्तमें उसे उपालम्भ दे और अन्य किसी विनय रहित पुरुषके मिषसे उसको काका, मामा, श्वसुर, साला आदि लोगों द्वारा शिक्षा दिलावे, परन्तु स्वयं उसका तिरस्कार न करे; कारण कि इससे वह कदाचित् निर्लज्ज होकर मर्यादा छोडदे । (१०) हिअए ससिणेहोवि हु, पयडइ कुवि व तस्स अप्पाणं ॥ पडिवन्नविणयमग्गं, आलवइ अछम्मपिम्मपरो ॥११॥ अर्थः-हृदयमें प्रीति होने पर भी बाहरसे उसे अपना स्वरूप क्रोधीके समान बतावे, और जब वह विनयमार्ग स्वीकार
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy