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________________ (४५६) लोगोंको चुपचाप द्रव्य देकर अपने पक्षमें मिलाकर कपटप्रपंच रचाया । उस समय वल्लभीपुरमें ऐसा नियम था कि, संग्रामका प्रसंग आने पर राजा सूर्यके वचनसे आये हुए घोडे पर चढे, पश्चात् प्रथम ही से नियुक्त किये लोग पंच वाजिंत्र बजावें, इतने ही में वह घोडा आकाशमें उडे और उसपर सवार हुआ राजा शत्रुओंको मारे और संग्रामकी समाप्ति होने पर वह घोडा वापस सूर्यमंडलमें चला जावे। इस समय रंकश्रेष्ठीने पंच वाजिंत्र बजानेवाले लोगोंको मिला रखे थे, जिससे उन्होंने राजाके घोडे पर सवार होनेके पहिले ही वाजिंत्र बजा दिये, इतने ही में घोडा आकाशमें उड गया । राजा शिलादित्य किंकर्तव्यविमूढ होगया । तब शत्रुओंने उसे मार डाला और सुखपूर्वक वल्लभीपुर जीत लिया। कहते हैं कि विक्रम संवत् ३७५ के अनन्तर वल्लभीपुर भेदन किया था । रंकश्रेष्ठीने मुगलोंको भी जलरहित प्रदेशमें डालकर मार डाले.........इत्यादि । अन्यायोपार्जित द्रव्यका यह परिणाम ध्यान में लेकर न्यायपूर्वक धनोपार्जन करनेका प्रयत्न करना चाहिये. कहा है किसाधुओंके विहार, आहार, व्यवहार और वचन ये चारों शुद्ध है कि नहीं ? सो देखे जाते हैं. परन्तु गृहस्थका तो केवल व्यवहार देखा जाता है । व्यवहार शुद्ध होने ही से सर्व धर्म-- कृत्य सफल होते है. दिनकृत्यकारने कहा है कि, व्यवहारशुद्धि धर्मका मूल है, कारण कि व्यवहार शुद्ध होवे तो कमाया
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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