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________________ (४३५) भूमि, वृक्षका अग्रभाग, पर्वतका सिर, नदी तथा कुएका किनारा और जहां भस्म, कोयला, बाल और खोपडियां पडी हों इतने स्थानों में अधिक समय तक खड़े न रहना । अधिक परिश्रम होनेपर भी जिस समय जो कार्य करना हो, उसे न छोडना । क्लेशके वश हुआ मनुष्य पुरुषार्थके फल स्वरूप धर्म अर्थ व काम तीनोंको नहीं पा सकता। मनुष्य जरा आडम्बर रहित हुआ कि उसका जहां तहां अनादर होता है, इसलिये किसी भी स्थानमें विशेष आडम्बर नहीं छोडना । परदेशमें जाने पर अपनी योग्यताके अनुसार सर्वांगमें विशेष आडम्बर तथा स्वधर्ममें परिपूर्ण निष्ठा रखना। कारण कि उसीसे बडप्पन, आदर तथा निश्चित कार्यकी सिद्धिआदि होना संभव है। विशेषलाम होने पर भी परदेशमें अधिक समय तक नहीं रहना, कारण कि,उससे काष्ठश्रेष्ठिादिककी भांति गृहकार्यको अव्यवस्थादि दोष उत्पन्न होता है। लेने बेचने आदि कार्यके आरंभमें, विघ्नका नाश और इच्छितलाभआदि कार्यकी सिद्धिके निमित्त पंचपरमेष्ठीका स्मरण करना, गौतमादिकका नाम लेना तथा कुछ वस्तुएं देव, गुरु और ज्ञान आदिके काममें आवे इस रीतिसे रखना । कारणकि, धर्मकी प्रधानता रखने ही से सर्व कार्य सफल होते हैं। धनोपार्जनके हेतु जिसे आरम्भ समारम्भ करना पडे उस श्रावकने सातक्षेत्रमें धन वापरनेके तथा अन्य ऐसे ही धर्म-कृत्योंके बडे २ मनोरथ करना । कहा है कि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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