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________________ (४२७) द्रव्यआदिके विषय में पूछा. श्रेष्ठीने कहा--"परदेशमें उपार्जन किया हुआ बहुतसा द्रव्य है, तथापि वह इधर उधर फैला हुआ होनेसे मेरे पुत्रोंसे लिया नहीं जा सकेगा. किन्तु मेरे एक मित्रके पास मैंने आठ रत्न धरोहर रखे हैं, वे मेरे स्त्रीपुत्रादिकोंको दिला देना." यह कह वह मर गया. स्वजनोंने आकर उसके पुत्रादिकोंको यह बात कही, तब उन्होंने अपने पिताके मित्रको विनयसे, प्रेमसे और अत्यादरसे घर बुलाया और अभयदानादि अनेक प्रकारकी युक्तिसे रत्नोंकी मांगणी की; परन्तु उस लोभी मित्रने एक भी बात न मानी तथा रत्न भी नहीं दिये. अन्तमें यह विवाद न्यायसभामें गया, किन्तु साक्षी, लेख आदि प्रमाण न होनेसे कुछ भी फल न हुआ. यह साक्षी रखकर द्रव्य देनेके विषयमें धनेश्वरश्रेष्ठीका दृष्टान्त है । इसलिये किसीको भी साक्षी रखकर द्रव्य देना चाहिये। साक्षी रखा हो तो चोरको दिया हुआ द्रव्य भी पीछा आता है. जैसे:-- एक वणिक धनवान तथा बहुत धूर्त था. मार्गमें जाते उसे चोर मिले. चोरोंने जुहार करके उससे द्रव्य मांगा. वणिकने कहा--" साक्षी रखकर यह सर्व द्रव्य तुम ले लो और समय पाकर पीछा देना, परन्तु मुझे मारो मत." चोरोंने इसे मूर्ख समझ एक काबचित्र जंगली बिलाडको साक्षी रख सर्व द्रव्य लेकर वणिकको छोड दिया. वह वणिक उस स्थानको बराबर
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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