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________________ (808) करना, जिसे कोई रोग हो उसने मधुरादि रस पर आसक्ति न करना, अर्थात् अपनी जीभ वशमें रखना, और जिसके पास धन होवे उसने किसी के साथ क्लेश न करना चाहिये. भंडारी, राजा, गुरु और तपस्वी तथा पक्षपाती, बलिष्ट क्रूर और नीच - मनुष्यों के साथ वाद न करना चाहिये. यदि किसी बडे मनुष्यसे द्रव्य आदिका व्यवहार हुआ हो तो विनय ही से अपना कार्य साधना; बलात्कार क्लेश आदि न करना. पंचोपाख्यानमें भी कहा है कि उत्तमपुरुषको विनयसे, शूरपुरुषको फितूरसे, नचिपुरुषको अल्पद्रव्यादिकके दानसे और अपनी बराबरी - का होवे उसे अपना पराक्रम दिखाकर वशमें करना चाहिये । धनका अर्थी व धनवान इन दोनों पुरुषोंने विशेषकर क्षमा रखना चाहिये. कारण कि - क्षमासे लक्ष्मीकी वृद्धि तथा रक्षा होती है. कहा है कि -ब्राह्मणका बल होम-मन्त्र राजाका बल नीतिशास्त्र, अनाथ प्रजाओंका बल राजा और वणिकपुत्रका बल क्षमा है. अर्थस्य मूलं प्रियवाक् क्षमा च कामस्य वित्तं च वपुर्वयश्च । धर्मस्य दानं च दया दम, मोक्षस्य सर्वार्थनिवृत्तिरेव ॥ प्रियवचन और क्षमा ये दोनों धनके कारण हैं. धन, शरीर और यौवनावस्था ये तीनों कामके कारण हैं. दान दया और इन्द्रियनिग्रह ये तीन धर्मके कारण हैं और सर्वसंग परित्याग करना यह मोक्षका कारण है । वचन क्लेश
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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