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________________ (३९२) आकर पियर अथवा अन्य कहीं चली जाय अथवा कुएमें पडकर या अन्य किसी रीतिसे आत्महत्या कर डाले । ४ मीठा ही भोजन करना, अर्थात् जहां प्रीति तथा आदर हो वहीं भोजन करना, कारण कि, प्रीति व आदर यही भोजनकी वास्तविक मिठास है । अथवा भूख लगे तभी खाना जिससे कि सभी मीठा लगे । ५ सुखपूर्वक ही सोना अर्थात् जहां किसी प्रकारकी शंका न होवे वहीं रहना ताकि वहां सुखसे निद्रा आवे । अथवा आंखमें निद्रा आवे तभी सोना, जिससे कि सुखपूर्वक निद्रा आवे । ६ गांव २ घर करना अर्थात् हर गांवमे ऐसी मित्रता करना कि, जिससे अपने घरकी भांति वहां भोजनादि सुखसे मिल सकें। ७ दरिद्रावस्था आनेपर गंगातट खोदना अर्थात् तेरे घरमे जहां गंगा नामकी गाय बंधती है बह भूमि खोदना, जिससे पिताका गाडा हुआ धन तुझे शीघ्र मिल जावे." सोमदत्तश्रेष्ठीके मुखसे यह भावार्थ सुन मुग्धने उसीके अनुसार किया जिससे वह धनवान्, सुखी तथा लोकमान्य होगया यह पुत्रशिक्षाका दृष्टान्त है। अतएव उधारका व्यवहार कदापि न रखना. कदाचित् उसके बिना न चले तो सत्य बोलनेवाले लोगों ही के साथ रखना. ब्याज भी देश, काल आदिका विचारकर ही के एक, दो, तीन, चार, पांच अथवा इससे अधिक टका लेना, परन्तु वह इस प्रकार कि जिससे श्रेष्ठियों में अपनी हंसी न होवे. देन
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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