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________________ ( ३८२ ) उत्पन्न करनेवाले अधिकार कारागृह समान है. राजाके अधिकारियोंको प्रथम नहीं परन्तु परिणाम में बन्धन होता है । यदि सुश्रावक राजाओंका काम करना सर्वथा न त्याग सके, तो भी गुप्तिपाल, कोतवाल, सीमापालआदिके अधिकार तो बहुत ही पापमय व निर्दय कृत्य हैं, इसलिये श्रद्धावन्त श्रावकके लिये सर्वथा त्याज्य हैं. कहा है किजानवर देवस्थान न्यायस्थान अंगरक्षक तलार, कोतवाल, सीमापाल, पटेल आदि अधिकारी किसी मनुष्यको भी सुख नहीं देते. शेष अधिकार कदाचित कोई श्रावक स्वीकारे, तो उसने मन्त्री वस्तुपाल तथा पृथ्वीधरकी भांति श्रावकों को सुकृतिकी कीर्ति हो, उस रीति से अधिकार चलाना चाहिये । कहा है कि--जिन मनुष्योंने पापमय राज्यकार्य करते हुए, उनके साथ धर्मकृत्य करके पुण्योपार्जन नहीं किया, उन मनुष्योंको द्रव्यके लिये धूल धोनेवाले लोगों से भी मूर्ख जानना चाहिये. अपने ऊपर राजाकी बहुत कृपा हो तो भी उसका शाश्वतपणा धार उसके किसी भी मनुष्यको अप्रसन्न नहीं करना तथा राजा अपनेको कोई कार्य सौंपे तो राजासे उस कामके ऊपर ऊपरी मनुष्य मांगना. सुश्रावकने इस प्रकार से राज्यसेवा करनी चाहिये. जहां तक बने श्रावकने श्रावक ऐसे राजा १ जेलर, कारागृहका अधिकारी, २ पोलिसका मुख्य अधिकारी,
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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