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________________ (३६३) जो देइ उवस्सयं जइवराण तवनिअमजोगजुत्ताणं । तेणं दिन्ना वत्थन्नपाणसयणासणविगप्पा ॥ २ ॥ घरमें यथोचित धन न होय, तो भी सुश्रावकने मुनिराजको वसति, शय्या, आसन, आहार, पानी, औषध, वस्त्र, पात्र आदि थोडेसे थोडा भी देना चाहिये । जयंती वंकचूल, कोशा वेश्या, अवंतिसुकुमाल आदि जीव साधुको उपाश्रय देने ही से संसार - सागर पार करगये. वैसे ही सुश्रावकने साधुकी निंदा करनेवाले तथा जिनशासनके प्रत्यनीक लोगोंको अपनी सर्वशक्ति से मना करना चाहिये । कहा है कि- सुश्रावकने सामर्थ्य होते हुए, भगवान्की आज्ञासे प्रतिकूल चलनेवाले लोगों की कदापि उपेक्षा न करना, समयानुसार अनुकूल अथवा प्रतिकूल उपायसे अवश्य शिक्षा के वचन कहना चाहिये. यहां द्रमकमुनिकी निन्दा करनेवाले लोगों को युक्तिसे मना करनेवाले अभयकुमारका दृष्टान्त जानो. साधुकी भांति साध्वियों को भी सुखसंयमयात्रा के प्रश्न आदि करना. उसमें इतनी बात और अधिक जानना कि, साध्वियों का दुराचारी और नास्तिक लोगोंसे रक्षण करना. अपने घर के समीप चारों ओरसे सुरक्षित तथा गुप्त द्वारवाली ( जहां एकाएक कोई घुस न सके ) वसति देना. अपनी स्त्रियोंद्वारा उनकी सेवा कराना, अपनी पुत्रियोंको ज्ञानादिगुणके निमित्त उनके पास रखना, अपने कुटुम्बमें की पुत्रीआदि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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