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________________ ( ३५२ ) आराधना तथा अनशन कर वह सौधर्मदेवलोक में सूर्याभ विमान के अन्दर देवता हुआ. विषप्रयोगकी बात खुल जाने से सूर्यकान्ता बहुत लज्जित हुई तथा भय से जंगलमें भाग गई और व सर्पदंश से मर कर नरकको पहुंची. एक समय आमलकल्पानगरी में श्रीवीर भगवान समवसरे तब सूर्याभ देवता बायें तथा दाहिने हाथ से एक सौ आठ खेलक तथा खेलिकाएं प्रकट करना आदि प्रकारसे भगवान्के सन्मुख आश्चर्यकारी नाटक कर स्वर्गको गया. तब गौतमस्वामी के पूछने पर श्रीवीरभगवान् सूर्याभ देवताका पूर्वभव तथा देवके भवसे व्यव कर महाविदेहक्षेत्र में सिद्धिको प्राप्त होगा इत्यादि बात कही. इसी तरह आमराजा बप्पभटसूरिके व कुमारपाल राजा श्री हेमचन्द्रसूरके उपदेश से बोधको प्राप्त हुए यह प्रसिद्ध है । अब संक्षेपसे थावच्चापुत्रकी कथा कहते हैं: द्वारिकानगरी में किसी सार्थवाहकी थावच्चा नामक स्त्री बडी धनवान थी. 'थावच्चापुत्र' इस नाम से प्रतिष्ठित उसके पुत्र बत्तीस कन्याओं से विवाह किया था. एक समय श्रीनेमिनाथ भगवान् के उपदेश से उसे प्रतिबोध हुआ. माताके बहुत मना करनेपर भी उसने दीक्षा लेनेका विचार नहीं छोड़ा. तब वह दीक्षा उत्सव निमित्त कृष्णके पास कुछ राजचिन्ह मांगने गई । कृष्णने भी थावच्चाके घर आकर उसके पुत्रको कहा कि, 'तू दीक्षा मत ले. विषयसुखका भोग कर.' उसने
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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