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________________ (३३६) उत्सव न होकर केवल रूढिके अनुसार वर-वधूका हस्तमिलाप किया गया । बडे धनवान व उदार श्रेष्ठीके घर उसका विवाह हुआ व श्वसुर आदि सर्व जनोंको वह मान्य थी, तो भी पूर्वकी भांति नये नये भय, शोक रोग आदि कारणोंसे उस कन्याको अपने मनवांछित विषयसुख तथा उत्सव भोगनेका योग प्रायः न मिल सका, जिससे वह मनमें बहुत उद्विग्न हुई तथा संवेगको प्राप्त हुई । एक दिन उसने केवलीमहाराजको इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि, " पूर्वभवमें तूने थोडा नकरा देकर मंदिरआदिकी बहुतसी वस्तुएं काममें ली व भारी आडंबर दिखाया, उससे जो दुष्कर्म तूंने उपार्जन किया, उसीका यह फल है ।” केवलाके यह वचन सुन वह प्रथम आलोयण व अनंतर दीक्षा ले अनुक्रमसे निर्वाणको प्राप्त होगई इत्यादि । अतएव उजमणाआदिमें रखने के लिये पाटलियां, नारियल, लड्डू आदि वस्तुएं उनका जितना मूल्य होवे, अथवा उ. नके तैयार करने, लानेमें जितना द्रव्य लगा होवे उससे भी कुछ अधिक रकम देना चाहिये । ऐसा करनेसे शुद्ध नकरा कहलाता है। किसीने अपने नामसे उजमणा किया हो परन्तु अधिकशक्ति न होनेसे उसकी रीति पूर्ण करनेके लिये अन्य कोई मनुष्य कुछ रखे, तो उससे कुछ दोष नहीं होता । अपने घरदेरासरमें भगवानके सन्मुख रखे हुए चावल, सुपारी, नैवेद्य
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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