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________________ (३२९) पक्षकी मुद्दत प्रकट कर देना चाहिये, और मुद्दतके अन्दर ही उघाईकी राह न देखते स्वयं दे देना चाहिये. मुद्दत बीत जाने पर देवादि द्रव्योपभोगका दोष लगता है. देवद्रव्यादिककी उधाई भी वह काम करनेवाले लोगोंने अपने द्रव्यकी उघाईके समान शीघ्र व मन देकर करना चाहिये. वैसा न करे, व आलस्य करे तो, कभी २ दुदैवके योगसे दुर्भिक्ष देशका नाश, दारिद्र्य प्राप्ति इत्यादिक होजाती है, पश्चात् कितना ही प्रयत्न करने पर भी उघाई नहीं होती जिससे भारी दोष लगता है. जैसे: • महेन्द्रनामक नगर में एक सुन्दर जिनमंदिर था. उसमें चंदन, कपूर, फूल, अक्षत, फल, नैवेद्य, दीप, तेल, भंडार, पूजा की सामग्री, पूजाकी रचना, मंदिरका समारना, देवद्रव्यकी उधाई, उसका हिसाब लिखना, यत्नपूर्वक देवद्रव्य रखना, उसके जमाखर्चका विचार करना, इतने काम करने के निमित्त श्रीसंघने प्रत्येक कार्य में चार २ मनुष्य नियत किये थे. वे लोग अपना २ कार्य यथारीति करते. एक दिन उघाई करनेवालोंमेंका मुख्य मनुष्य एक जगह उघाई करने गया, वहां उघाई न होते उलटे देनदार के मुखमेंसे निकले हुए दुर्वचन सुनकर वह बहुत दुःखी हुआ और उस दिन से वह उधाईके कार्य में आलस्य करने लगा, “ जैसा मुख्य व्यक्ति वैसे ही उसके हाथ नीचेके लोग होते हैं." ऐसा लोक व्यवहार होने से उसके आधीनस्थ लोग भी आलस्य करने लगे. इतने ही में देशका नाश आदि
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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