SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) विनीतपन ये आठ गुण दृष्टिगोचर होते हैं। जो मनुष्य विशेष निपुणमति होते हैं उनमें २ रूपवानपन, १५ सुदीर्घदर्शीपन, १६ विशेषज्ञपन, १९ कृतज्ञपन, २० परहितार्थकारीपन व २१ लब्धलक्षपन ये छः गुण प्रायः पाये जाते हैं । जो मनुष्य ३ न्यायमार्गरति होते हैं उनमें ६ भीरुपन, ७ अशठपन, ९ लज्जालुपन, १२ गुणरागीपन, तथा १३ सत्कथपन ये पांच गुण बहुधा पाये जाते हैं । जो मनुष्य ४ दृढनिजवचनस्थित होते हैं उनमें ४ लोकप्रियवन और १४ सुपक्षयुक्तपन ये दो गुण प्रायः देखने में आते हैं। इसी हेतुसे मूलगाथामें श्रावकों के इक्कीसगुणों के बदले में चार विषेशणोंसे चार ही गुण ग्रहण किये हैं । जिस मनुष्यमै १ भद्रकप्रकृतिपन, २ विशेष निपुणमतिपन और ३ न्यायमार्गरतिपन ये तीन गुण नहीं होते हैं वह केवल कदाग्रही (दुष्ट), मूर्ख तथा अन्यायी होनेसे श्रावक-धर्म पाने के योग्य नहीं । तथा जो ४ दृढप्रतिज्ञी नहीं होता है वह यदि श्रावकधर्मको अंगीकार कर भी ले तो भी ठगकी मित्रता, पागल मनुष्यका श्रृंगार अथवा बन्दरके गलेका हार जिस प्रकार अधिक समय तक नहीं ठहर सकते उसी भांति वह मनुष्य भी जीवनपर्यन्त धर्मका पालन नहीं कर सकता है । इसलिये जो मूलगाथा में वर्णन किये हुए चार गुणोंका धारण करनेवाला मनुष्य होता है वही, जैसे उत्तमतासे तैयार
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy