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________________ ( २८२ ) को भेट किया। तब वसुमित्र ने भी कहा कि, " इस लोकमं मरे सर्व कार्य सफल करने वाला एक मात्र चित्रमति मंत्री सर्व श्रेष्ठ है । " तदनुसार धन्यने वह कमल चित्रमति मंत्रीको भेट किया, तो चित्रमतिने भी कहा कि, " मेरी अपेक्षा कृप राजा श्रेष्ठ है, कारण कि पृथ्वी तथा प्रजाका अधिपती होनेसे उसकी दृष्टिका प्रभाव भी दैवगतिकी भांति बहुत चमत्कारिक है । उसकी क्रूरदृष्टि जो किसी पर पडे तो वह चाहे कितना ही धनी हो तो भी कंगाल के समान हो जावे, और उसकी कृपादृष्टि जिस पर पडे वह कंगाल हो तो भी धनी हो जाय । " चित्रमतिके ये वचन सुन धन्यने वह कमल राजाको दिया। राजा कृप भी जिनेश्वर भगवान् तथा सद्गुरुकी सेवा में तत्पर था, इससे उसने कहा कि, " जिसके चरण कमल में मेरे समान राजा भ्रमरके सदृश तल्लीन रहते हैं, वे सद्गुरु ही सर्व श्रेष्ठ हैं, पर उनका योग स्वाति नक्षत्र के जलकी भांति स्वल्प ही मिलता है । " राजा यह कह ही रहा था कि, इतनेमें सब लोगोंको चकित करनेवाले कोई चारण-मुनि देवताकी भांति आकाशमेंसे उतरे । बडे की बात है कि, आशारूप लता किस प्रकार सफल हो जाती है ! राजादि सर्वलोकोंने सादर मुनिराजको आसन दे, बन्दना आदि करी व अपने २ उचित स्थान पर बैठ गये. पश्चात् धन्यने विनयपूर्वक वह कमल मुनिराजको भेट किया. तब चारण-मुनिने कहा कि, " जो तारतम्यतासे किसी भी मनुष्य में
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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