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________________ (२७७) करनेवाली प्रीतिमती रानी अनुक्रमसे सुलसाश्राविकाके समान होगई । हंसकी वाणीका मानो यह कोई महान् चमत्कारिक गुण है । अस्तु; एक समय राजधर राजाके चित्तमें ऐसी चिन्ता उत्पन्न हुई कि, " अभी तक पट्टरानीको एक भी पुत्र नहीं हुआ, और अन्य रानियोंके तो सैकडों पुत्र हैं। इसमें राज्यके योग्य कौनसा पुत्र होगा ?" राजा इस चिन्तामें था, इतने ही में रात्रिको स्वप्नमें मानो साक्षात् ही हो ! ऐसे किसी दिव्यपुरुषने आकर उसे कहा कि, " हे राजन् ! अपने राज्यके योग्य पुत्रकी तू कुछ भी चिन्ता न कर । जगत्में कल्पवृक्षके समान फलदायक ऐसे केवल जिनधर्म ही की तू आराधना कर । जिससे इसलोक परलोकमें तेरी इष्ट सिद्धि होगी।" ऐसा स्वप्न देखनेसे राजधर राजा पवित्र हो हर्षसे जिन-पूजाआदिसे जिनधर्मकी आराधना करने लगा। ऐसा स्वम देखनेपर भला कौन आलस्यमें रहे ? पश्चात् कोई उत्तम जीवने, हंस जैसे सरोवरमें अवतार लेता है, वैसे ही प्रथम अरिहंतकी प्रतिमा स्वममें बताकर प्रीतिमतीके गर्भ में अवतार लिया। इससे सर्वलोगोंके मनमें अपार हर्ष हुआ । गर्भके प्रभावसे प्रीतिमती रानीको मणिरत्नमय जिन-मंदिर तथा जिन-प्रतिमा कराना तथा उसकी पूजा करना इत्यादि दोहला उत्पन्न हुआ। फूल फलके अनुसार हो उसमें क्या विशेषता है ? १ गर्भवती स्त्रीको गर्भावस्थाके समय जो इच्छा उत्पन्न होती हैं उसे दोहला कहते हैं।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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