SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १मिथ्यात्वमें प्रेम रखनेवाला, २ धर्म द्वेषी,३ बिलकुल मूढ तथा ४ पूर्व व्युद्ग्राहित अर्थात् सद्गुरूका लाभ होनेसे पहिले ही जिसका चित्त किसी मतवादीने एकांतवादमें असत्य समझाकर दृढ कर लिया हो वह, ये चार व्यक्ति धर्म ग्रहण करनेके योग्य नहीं, इसलिये जो मध्यस्थ याने किसी मत पर पक्षपात न रखनेवाला हो, उसीको धर्म ग्रहण करनेके योग्य समझना चाहिये । ५ दृष्टिरागी धर्म ग्रहण नहीं कर सकता, यथा-भुवनभानु केवलीका जीव पूर्व-भवमें विश्वसेन नामक राजपुत्र था. वह त्रिदंडीका भक्त था, गुरूने बहुत परिश्रमसे उसे प्रतिबोधित किया और अंगीकार किये हुए समकितमें दृढ़ किया, किंतु तो भी पूर्व परिचित त्रिदंडीके वचनसे पुनः इसमें दृष्टिरागका उदय हुआ, जिससे पूर्व प्राप्त समकितको खोकर अनन्तकाल तक संसारमें भ्रमण करता रहा । २ धर्मका द्वेषी धर्म पानेके योग्य नहीं, यथा---भद्रबाहुस्वामीका भाई वराहमिहिर धर्म-द्वेषी होने के कारण प्रतिबोध पाकर संसारमें भ्रमण करता रहा। ३ मृढ अर्थात् वह जो कि गुरूके वचनोंका भावार्थ न समझे। इसके उपर एक किसानके लडकेका लोक प्रसिद्ध दृष्टांत है, यथा एक किसानका लडका था, वह इतना जडबुद्धि था कि सामान्य बात भी नहीं समझ सकता था। एक समय उसकी माताने उसे शिक्षा दी कि " हे पुत्र ! राज्यसेवाके निमित्त दरबारमें विनय करना चाहिये." उसने पूछा कि-" विनय
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy