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________________ (२५५) कारणं अस्थि जइ किंचि, कायव्वं जिणमंदिरे । तओ सामाइअं मोत्त, करे जं करणिज्जयं ॥ १॥ जो जिनमंदिरमें कायासे बन सके ऐसा कोई कार्य हो तो सामायिक पार कर जो कार्य हो वह करे । सूत्रगाथामें " विधिना" ऐसा पद है, उससे भाष्यादि ग्रंथमें चौबीस मूल द्वारसे और दो हजार चौहत्तर प्रतिद्वारसे कही हुई, दशत्रिक तथा पांच अभिगम आदि सर्व विधि इस स्थान पर लेना। यथा-- १ तीन निसीही. २ तीन प्रदक्षिणां, ३ तीन प्रणाम, १ तीन निसीही इस प्रकार:-- देरासरके मूलद्वारमें प्रवेश करते अपने घर संबंधी ब्यापारका त्याग करनारूप प्रथम निसीही है १ गभारेके अन्दर घुसते देरासरको पूंजने समारनेके कार्यको त्याग करनारूप दूसरी निसीही है । २ चैत्यवंदन करते समय द्रव्यपूजाका त्याग करनारूप तीसरी निसीही है ३।.. . २ जिनप्रतिमाकी दाहिनी ओरसे ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी आराधनारूप तीन प्रदक्षिणा देना । ३ तीन प्रकारके प्रणाम इस प्रकार:- जिनप्रतिमाको देख दोनों हाथ जोड कपालको लगाकर प्रणाम करना, यह प्रथम अंजलीबद्ध प्रणाम १ कमरके ऊपरका भाग कुछ नमाकर प्रणाम करना यह दूसरा अर्धावनतप्रणाम २ दोनों घुटने, दोनों हाथ और मस्तक ये पंचांग नमा कर खमासमण देना यह तीसरा पंचांग प्रणाम ३.।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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