SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४२) कली भी तोडना नहीं। चंपा और कमल इनके दो भाग करनेसे बहुत दोप लगता है। गंध, धूप, दीप, अक्षत, मालाएं, बलि नैवेद्य,जल और श्रेष्ठ फल इतनी वस्तुओंसे श्रीजिनभगवानकी पूजा करना । शांति के निमित्त लेना हो तो पुष्प फल आदि श्वेत लेना, लाभके हेतु पीला लेना, शत्रुको जीतने के लिये श्यामवर्ण, मंगलिकके लिये लाल और सिद्धि के हेतु पंचवर्ण लेना । पंचामृतका स्नात्र आदि करना, और शांति के निमित्त घी गुड सहित दीपक करना । शांति तथा पुष्टिके निमित्त अग्निमें नमक डालना उत्तम है । खंडित, जुडा हुआ, फटा हुआ, लाल तथा भयंकर ऐसा वस्त्र पहिर कर किया हुआ दान,पूजा, तपस्या,होम, आवश्यक आदि अनुष्ठान सर्व निष्फल है। पुरुष पद्मासनसे बैठ, नासिकाके अग्रभाग पर दृष्टि रख, मौन कर, वस्त्रसे मुखकोश बांध कर जिनेश्वरभगवानकी पूजा करें । १स्नात्र, रविलेपन ३ आभूषण, ४ फूल, ५वास, ६धूप, ७ दीप, ८ फल, ९ अक्षत १० पत्र, ११ सुपारी, १२ नैवेद्य, १३ जल, १४ वस्त्र, १५चामर १६ छत्र, १७ वाजिन्त्र, १८ गीत, १९ नाटक, २० स्तुति, २१ भंडारकी वृद्धि । इन इकवीस उपचारोंसे इकबीस प्रकारी पूजा होतीहै । सर्वजातिके देवता ऐसी भगवानकी इकवीस प्रकारकी प्रसिद्ध पूजा निरंतर करते हैं; परंतु कलिकालके दोषसे कुमतिजीवाने खंडित करी । इस पूजामें अपनेको जो वस्तु प्रिय हो, वह वस्तु भगवानको अर्पण करना, इकवीस प्रकारी पूजाका यह प्रकरण उमास्वातीवाचकजीने किया ऐसी प्रसिद्धि है।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy