SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४०) पूजा इन सर्वव्यापक पूजाके तीन प्रकारों में समावेश हो जाता है । सत्रहप्रकारी पूजाके भेद इस प्रकार है-- १ स्नात्र व विलेपन करना, २ वासपूजामें दो नेत्र चढाना, ३ फूल चढाना, ४ फूलकी माला चढाना, ५ वर्णक (गंध विशेष) चढाना, ६ जिनेश्वर भगवानको चूर्ण चढाना, ७ मुकुट आदि आभरण चढाना. ८ फूलघर करना, ९ फूलका ढेर करना १० आरती नथा मंगलदीप करना ११ दीप करना, १२ धूप खेना, १३ नैवेद्य धरना, १४ उत्तम फल धरना, १५ गायन करना, १६ नाटक करना, १७ वाजिंत्र (बाजे ) बजाना। इकवीसप्रकारीपूजाकी विधि भी इसी तरह कही है, यथा:--- पश्चिमदिशाको मुख करके दातन करना, पूर्वदिशाको मुख करके स्नान करना, उत्तरदिशाको मुख करके उज्वल वस्त्र पहिरना, और पूर्व अथवा उत्तरदिशाको मुख करके भगवानकी पूजा करना । घरमें प्रवेश करते शल्य वर्जित बायें भागमें डेढ हाथ ऊंची भूमि पर घर देरासर करना। जो नीचे भूमिसे लगता हुआ देरासर करे तो उसका वंश क्रमशः नीचे जाता है अर्थात् धीमे २ नष्ट हो जाता है। पूजा करनेवाला मनुष्य पूर्व अथवा उत्तर दिशाकी तरफ मुख करके बैठे, परंतु दक्षिणदिशाको तथा चारों उपदिशाओंको मुख करके न बैठे। जो पश्चिमदिशाको मुख करके भगवानकी पूजा करे तो मनुष्यकी चौथी पीडामें उसका क्षय होताहै; और दक्षिणदिशाको
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy