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________________ (२३१) कहा जाता है, इसीलिये बनवाससे आनेपर रामचन्द्रजीने महाजनसे अन्नकी कुशल पूछी थी । कलहका अभाव और प्रीतिआदि परस्पर भोजन करानेसे दृढ होते हैं. विशेष कर देवता भी नैवेद्य ही से प्रसन्न होते हैं । सुनते हैं कि- अग्निवैताल सोमूडा धान्यके नैवेद्यआदि ही से विक्रमराजाके वशमें हुआ था । भूत, प्रेत, पिशाच आदि भी खीर, खिचडी, बडां इत्यादि अन्न ही का उतारा आदि मांगते हैं. वैसेही दिक्पालका तथा तीर्थकरका उपदेश होनेके अनन्तर जो बलि कराया जाता है वह भी अन्न ही से कराते हैं। एक निर्धन कृषक साधुके वचनासे समीपस्थ जिनमंदिरमें प्रतिदिन नैवेद्य धरता था। एक दिन देर होजानेसे अधिष्ठायक यक्षने सिंहके रूपसे तीन भिक्षु बताकर उसकी परीक्षा करी । परीक्षामें निश्चल रहा इससे संतुष्ट यक्षके वचनसे सातवें दिन स्वयंवरमें कन्या, राजजय और राज्य ये तीनों वस्तुएं उसे मिलीं । लोकमें भी कहा है कि धूपो दहति पापानि, दीपो मृत्युविनाशनः । नैवेद्ये विपुलं राज्यं, सिद्धिदात्री प्रदक्षिणा ॥ १ ॥ धृप पापोंको भस्म कर देता है, दीप मृत्युको नाश करता है, नैवेद्य देनेसे विपुल राज्य मिलता है और प्रदक्षिणास कार्यसिद्धि होती है । अनआदि सर्व वस्तुएं निपजनको कारण होनेसे जल अन्नादिकसे भी अधिक श्रेष्ठ है। इसलिये वह भी
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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