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________________ (२१८) यमान होवे उसी प्रकार अपनी पूजा सामग्री वापर कर पूजा करना । ऐसा करनेसे प्रथम पूजा निर्माल्य भी नहीं मानी जाती, कारण कि. उसमें निर्माल्यका लक्षण नहीं आता। गीतार्थ आचार्य उपभोग लेनेसे निरुपयोगी हुई वस्तुको निर्माल्य कहते हैं । इसीलिये वस्त्र, आभूषण, दोनों कुंडल इत्यादि बहुतसी वस्तुएं एक बार उतारी हुई पुनः जिनबिम्ब पर चढाते हैं। ऐसा न होवे तो एक गंधकापायिकावस्त्रसे एक सौ आठ जिनप्रतिमाकी अंगलूहणा करने वाले विजयादिक देवताका जो वर्णन सिद्धान्तमें किया है, वह कैसे घटित हो ?। जिनबिम्ब पर चढाई हुई जो वस्तु फीकी, दुर्गन्धित, देखने वालेको भली न लगे तथा भव्यजीवके मनको हर्षित न कर ऐसी होगई हो, उसीको श्रुतज्ञानी पुरुष निर्माल्य कहते हैं ऐसा संघाचारवृत्ति में कहा है । प्रद्यम्नमूरिरचित विचारसारप्रकरणमें तो इस प्रकार कहा है कि चैत्यद्रव्य ( देवद्रव्य ) दो प्रकारका है-- एक पूजाद्रव्य और दूसरा निर्माल्यद्रव्य । पूजा के निमित्त लाकर जो द्रव्य एकत्रित किया हो वह पूजाद्रव्य है, और अक्षत, फल, बलि ( मिठाई आदि ), वस्त्र आदि संबंधी जो द्रव्य, वह निर्माल्यद्रव्य कहलाता है । उसका जिनमंदिरमें उपयोग जानो । इस वचनमें प्रतिमाके सन्मुख धरे हुए अक्षतआदि द्रव्यको भी निर्माल्य कहा है, परन्तु अन्यस्थानमें आगममें, प्रकरणमें अथवा चरित्रादिकमें कहीं भी यह
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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