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________________ ( २०२ ) 4. #1 परन्तु उसने नहीं दिया । तत्र कुमारपाल राजाने रुष्ट हो चाहड को बहुत दान न करना ऐसा कहकर साथ में सैन्य देकर भेजा। तीसरे दिन चाहडने भंडारी के पास से लक्ष द्रव्य मांगा, तो उसने नहीं दिया, अतः उसे निकाल दिया, और यथेच्छ दान देकर रात्रिको चौदह सौ ऊंटनी सवार के साथ जा यंत्रापुरको घेर लिया। उस दिन नगर में सातसौ कन्याओं का विवाह था. उसमें विघ्न न आवे, इस हेतुसे वह रात्रि बीत जाने तक विलम्ब करके प्रातःकाल होते ही चाहडने दुर्ग ( किल्ला ) हस्तगत किया । तथा बंबेरा के राजा के सात करोड स्वर्णमुद्रा व ग्यारह सौ घोडे लिये तथा किल्लेको तोड कर चूर्ण चूर्ण कर दिया। उस देशमें अपने स्वामी कुमारपालकी आज्ञा प्रचलित की तथा सातसौ सालवियों को साथ लेकर उत्सव सहित अपने नगर में आया । कुमारपालने कहा- " अतिउदारता यह तेरे में एक दोष है । वही दोष तुझे दृष्टिदोष से अपनी रक्षा करनेका एक मंत्र है ऐसा मैं जानता हूं, कारण कि तू मेरी अपेक्षा भी अधिक द्रव्य का व्यय करता है। " चाहड ने कहा " मुझे मेरे स्वामीका बल है इससे मैं अधिक व्यय करता हूं | आप किसके बलसे अधिक व्यय करो ? " चाहडके इस चतुरतापूर्ण उत्तरसे कुमारपाल बहुत प्रसन्न हुआ और उसको सन्मानपूर्वक " राजघरट्ट " की पदवी दी। दूसरेकी पहिरा हुआ वस्त्र न लेना इस पर यह दृष्टांत है ।
SR No.022197
Book TitleShraddh Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJain Bandhu Printing Press
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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